“एक लेखिका की नज़र से” – कोरोना लॉकडाउन (Corona Lockdown)

मैं अपने होटल की ऊपर की मंज़िल में  बैठा था.. फिर उठा और  थोडा टहलने  की मंशा से बाहर बालकनी में आ खड़ा हुआ… नीचे गंगा घाट था और सामने कल-कल बहती गंगा.. सामने दूर-दूर चारो तरफ फैली ऊँची पर्वत श्रृंखलाएं… ठंडी हवा का एक झोंका आया और बदन को छूता हुआ न जाने कहाँ चला गया…

आजकल हर तरफ़ सन्नाटा छाया हुआ था… कोरोना वायरस के चलते… मैं गंगा के निर्मल जल को निहार रहा था… अचानक मुझे एक सन्तो जैसे साधरण वस्त्र पहने एक महिला दिखी… वो कुछ सीढ़ी नीचे उतर कर वही बैठ गयी… थोडा गंगा जल हाथों में लिया तथा अपने ऊपर छिडक दिया… लगा वो इत्मीनान से एकान्त में बैठना चाहती है… मेरे दिल मे भी आई… चल तू भी जा बैठ वहीं तथा मैं इतनी तेजी से नीचे उतरा व उसके बगल में जा बैठा अचानक मुझे यूं पास बैठे देख वो शायद डरी सहमी सी  मेरी तरफ देखती हुई थोड़ा सरक कर दूरी बना ली व अपने सिर के आंचल से मुँह लपेट लिया… तब मुझे एहसास हुआ ये क्या किया मैंने… थोडा मन ही मन हंसी आई उसे रोका और व दोबारा गंगा को निहारने लगा… कनखियो से उसे निहारा व जेब से रुमाल निकाल कर उसे अपने मुँह पर बान्ध लिया… उस समय उसने भी मुझे देखा व उसे हंसी आ गयी थी… पर मुँह पर कपड़ा लिपटा होने के कारण कुछ ज्यादा पता नही लगा… अनायास ही उसने पूछा… अचानक इस सन्नाटे मे कहाँ से टपके… उसके शब्दों के तरीके से मुझे हंसी आ गयी, व मैं झट से बोला… अरे मैं तो ये पीछे होटल से टपका आपको देख कर… क्या करू कोरोना मे फंसा हुआ हूँ… महिला ने थोडी और दूरी बनाते हुए कहा… क्या आपको भी है… अरे तो खुले मे क्यों घूम रहे हो… क्या जाँच नही करवाई… और वो सहमी सी मुझे देखने लगी…

अरे मेरा मतलब लॉकडाउन की वजह से फंसा हूं… मैं तो नौकरी करता हूँ… ये हमारा ही होटल है… माँ पापा से मिलने आया था तो फस गया… उसने एक मन्द मुस्कान के साथ गहरी सांस ली… मैंने पूछा आप कैसे घूम रही हो पुलिस ने पकड़ा नहीं… नहीं उसने गंभीर होते हुए कहा ऊपर पहाडी पर मेरा घर है… मैं यहां अनाथ आश्रम मे आती हूँ… मैने कहा… ओ… फिर हम दोनो खुल कर बातें करने लगे… लग रहा था जाने कब से जानते है… हाँ प्रकृति को मनुष्य ने ज्यादा ही नुक्सान पहुँचा दिया है मैडम… वह बोली… सही बोला… हम इनसानों को लगने लगा था कि हम कुछ भी कर सकते हैं… उस ऊपर वाले की हमे ज़रूरत ही नही है… परन्तु उस ईश्वर रूपी ताकत ने बस एक नन्हा सा झटका दिया तो सभी के होश ठिकाने लग गये… मैं भी समर्थन मे हाँ में हाँ मिलाता रहा… अचानक वह उठते हुए बोली… अरे मैं तो आपकी बातों में सब भूल गयी मुझे जल्दी जाना था… मैं भी खड़ा हो गया… कुछ बोल नहीं पाया, लगा क्या बोलूं… हाथ मिलाने को तुरंत हाथ आगे किया… तो मैडम ने नमस्ते के लिए हाथ जोड़ दिये… हम दोनों एक साथ मुस्कराये… मैंने भी हाथ जोड़ दिये… वो ऊपर जाने लगी… मैने लपक कर पूछा क्या आप रोज आती हैं? वह वहीं रुक कर बोली… नही, कहीं भी थोड़ा बैठ जाती हूँ थकान मिटाने को… और फिर वह सीढ़ियों पर ऊपर की तरफ चढने लगी… मैं अवाक सा खड़ा देखता रहा… अचानक ही होश सा आया… और मैं दो चार सीढ़ी चढ़ कर पीछे से बोला… अरे! मैडम साध्वी जी, यहीं आ कर थकान उतार लेना कल भी… मैंने ये इतनी ज़ोर से बोला की आवाज़ सन्नाटे में गूंज गयी… उसने मुड़ कर देखा और इशारे से हाथ हिलाया, जैसे हाँ का इशारा हो… वो चली गयी व मैं उसी खामोश उदासी को गले लगाने के लिए होटल की तरफ चल दिया… मन में कल उस अंजान दोस्त के इन्तजार में…

रात हो गयी, बाहर गंगा आरती की पवित्र आवाज़ आ रही थी… मेरा मन कुछ विचलित सा हो रहा था… थोडी देर टेलीविज़न खोल कर समाचर सुने… वही एक ही बात… कोरोना से ये कोरोना से वो… थोड़ी देर चैनल बदले… फिर दोस्तो को कुछ फ़ोन किये तथा बिस्तर पर लेट कर पर फ़ेसबुक देखा और वाटसैप पर मैसेज किये… अचानक साध्वी का ध्यान आ गया… थोड़ा अपने आप में मुस्कुराकर बडबडाया… हाँ कल साध्वी का फ़ोन  नम्बर भी लूँगा… समझदार है, सरल है  अच्छी बातें कर रही थी… लाईट बन्द करके फिर सोने की एक असफल कोशिश थी मेरी क्योंकि नीन्द तो मानो गंगा पार भी दिखाई नही दे रही थी… यूँही सोच विचार में न जाने कब नीन्द आ गई… सुबह से दिन तक माँ बाप के साथ बिता दिया व खाना खा कर ऊपर के कमरे में आ गया… एक दो फ़ोन किये पर नज़र जैसे किसी का इन्तज़ार कर रही थी… बालकनी से दूर-दूर तक सुकून भरी प्रकृति का नज़ारा दिखाई दे रहा था… मैं अंदर आ गया तथा दोस्त को फ़ोन मिलाया व घूम-घूम कर बात करने लगा… अचानक मुझे साध्वी दिखी… वो गंगा जी की तरफ जा रही थी… मुझे तो खुद पर यकीन नही आया कि ये सच मे आ गई…. तुरंत दोस्त को बोला, बाद में करता हूं बात… और सीधे तेज़ी से गंगा की ओर उतरा… तब तक वो बैठ गई थी… मैं लगभग दौड़ते हुए उतरा… पैरों की टप-टप सुन कर उसने पीछे देखा और मन्द-मन्द मुस्कुराने लगी… मैं पास जाकर बैठ गया व खुशी से नमस्ते किया फिर ध्यान आया की दूरी बननी है तथा थोड़ी सी दूरी बना ली… कुछ क्षण चुप रहे… फिर मैंने मौन तोडते हुए कहा… कैसी हो आप और आपके साथी लोग? उसने भी उसी तरह उत्तर दिया… ठीक हैं सभी… मैने अच्छा कह कर समर्थन दिया… फिर वह कुछ गम्भीर भाव में बोली…  देखो ना क्या हो गया है, वक़्त का मिज़ाज एक दम क्रूर जान पड़ता है… कल तक हर तरफ शोर-गुल था, कहीं खुशियों की मधुर झंकार, सभी एक दूसरे का हाथ पकडे घूमते मचलते, जहाँ देखो शोर ही शोर था… और आज कोई नज़र ही नही आ रहा… जहाँ तक देखो सन्नाटा ही पसरा हुआ है… वह जैसे गंगा की धारा सी बहती चली जा रही थीं… एक टक कभी उसको निहारता व कभी गंगा को… वह निश्चल सी अपनी बातों को सुना रही थी व मैं उसकी उन धाराओं में निरंतर गोते लगा रहा था… बातों की उन धाराओं मे सच्चाई, गहराई व सरलता सब कुछ शामिल था… वह कई बातें करती और कभी-कभी मेरी ओर भी देखती… और फिर एक नई बात शुरू कर देती… अनाथालय की भी बातें सुना रही थी… मैं निरंतर उसकी बातें सुन रहा था क्योंकि मैं तो हमेशा कभी पढाई और कभी नौकरी के चक्कर में रहा… कभी इस तरह के लोगों का साथ नही मिला… मैं तो उसकी बातों व विचारों को डूब कर सुन रहा था… कभी खयाल आता की क्या ये राम की सीता जैसी है, नहीं, ये तो कृष्ण की राधा सी है… नहीं, ये तो कृष्ण की बंसी सी मधुर बजती जा रही है और उसी सोच के बीच मैंने अपना हाथ धीरे से अपने माथे पर दे मारा… मेरी इस हरकत पर उसने मेरी ओर देखा… उसे लगा शायद वो बोले जा रही है इसलिए मैने बोर होकर ये किया… वह थोड़ा सकपकाई और एक मुस्कान के साथ बोली अरे-अरे, मैं भी ना बोले ही जा रही हूँ… मुझे अपनी इस बात पर हैरानी हुई… मैने कहा नही जी ये आपकी बात पर नही था… मुझे कुछ याद आ गया तो किया… आप तो बड़ी मधुरता से सब बता रहीं हैं… अरे! हाँ, मैने बात बदली… आप अपना फ़ोन नम्बर दे सकती हो… वह बोली हाँ-हाँ लिखो… वैसे मैं देती नहीं हूं पर आपको दे ही दूँ… मैनें तुरंत उसे व्हाट्सप्प व फेसबुक पर ले लिया… उसने फ़ोन देख कर कहा लो आप जैसा एक दोस्त और बनने को है… उसने फ़ोन देखा और फिर मुझे ध्यान से देखा और बोली… आप इसे जानते हो… मैने मुस्कुरा कर कहा, ये तो मैं ही हूँ… फोटो पुरानी है (उसने कहा)

मुझे तसल्ली हूई… आप विवाहित हो? जी हाँ पर अब मेरे पति नहीं हैं… मैं तो कुछ कह नहीं पाया… बस उसे देखा… अरे अब तो काफी दिन बीत गये… माँ पिता की देख रेख कर लेती हूँ… काफी ठीक था सब कुछ, अब कुछ खास नही… मुझे कैंसर है परन्तु शुरू से ही दवा खाती हूँ… इसलिए थमा हुआ हैं… तथा लोगों की सेवा करने का मौका मिल रहा है व माँ बाप को भी देख लेती हूँ… मेरे पास तो शब्द ही नहीं थे जैसे… मैं एक टक उसे देखने लगा… मैनें उसे इस समय ध्यान से निहारा… मन उदास हो गया,,,वह मुस्कुरा कर बोली अरे क्या हुआ… ये उदासी क्यों जी… सब ठीक है? इस साल ठीक-ठाक हूं… फिर बोली, आप से बातों में पता ही नहीं चला… ठीक है, चलती हूँ…  हम खडे हुए और दोनों ने नमस्ते की… वो दो चार सीढ़ी चढ़ कर रुकी… मैं उदास सा, उसे जाते देख रहा था… वह मुडी और मुस्कुराकर बोली… दोस्त कल आऊंगी यहीं… अब कल की तरह ज़ोर से मत चिल्लाना ओके… वर्ना इस सन्नाटे मे पूरा शहर सुन लेगा… और हँसती हुई चली गयी… मैं दोबारा वहीं बैठा उसी के बारे मे सोचता रहा… दुखों से भरी ये कौन है… अपने पल पल की मुस्कराहट में अपने दुख दर्द छुपती ये साध्वी सी… हे भगवान इसके दुख दूर करो… 

अब हम इसी तरह बातें करते रोज़ नही थकते थे… श्याम का समय था और मैं बालकनी में खड़ा इधर-उधर देख रहा था… श्याम अब रात मे विलीन हो रही थी… देखते ही देखते अन्धेरे ने सब कुछ अपने आंचल में समेट लिया… पर्वतों पर बसे छोटे-छोटे पहाड़ी गाँवों की बिजली  टिमटिमा रही थी… दूर से लग रहा था कि मानो तारे ज़मीन पर आ बिखरे हों… मैं उन्ही नजारों में खो सा गया तथा इधर-उधर फोन करना, यही तो हो रहा था… आज मैडम साध्वी नही आयी थी… मन में चिंता सी बनी हुई थी… मन को कितने ही तरीके से समझा रहा था… सोच रहा था कि वो आती तो काफी बातें करता… उनके अंदर का दर्द कम करता… उन्हे हंसाता… उनसे खूब बातें करता… जाने कैसी बातें करता… पर वो होती तो करता ना… फ़ोन करूँ? पर उन्होने मना किया है… कहा है की मैं स्वयं करूंगी समय निकाल कर… अंदर आकर बैठ गया… क्या करुँ? अगर आश्रम गयी होगी तो अब घर आ गयी होगी… फ़ोन उठाया और गेम खेलने लगा पर मन नही लगा… गेम बन्द करके सोचा फ़ोन ही कर लूँ… फ़ोन किया… ओफ्फ़ ये फ़ोन वाले भी ना जब देखो… कोरोना का ऐडवर्टीजमेंट चिपका देते है… अरे फ़ोन वाली मैडम… पता है… मैने ऐडवर्टीजमेंट सुनते हुए कहा… घरों में रहना है सोशल डिस्टेंस बनाना है… बाहर निकले तो मुँह पर कपडा या मास्क लगाना है… हाथो को 20 सेकंड तक अच्छे से धोना है… मैं बडबडा ही राहा था कि उधर से आवाज आई हेल्लो-हेल्लो… क्या बोल रहे हैं जी समझ नही आया… मुझे हंसी आ गयी… नहीं मैडम आपको नहीं बोला… जल्दी कहो फ़ोन मुझे मिलाया और बात कहीं और… अरे कोरोना वाली मैडम… मेरा मतलब  है जो फ़ोन पर कोरोना का ज्ञान देती है उसे कह रहा था… वो उधर से थोडा हंसी फिर बोली… हाँ कैसे हो… मैंने कहा ठीक ही हूं… वह बोली ठीक ही हूं क्यों? बोलो, ठीक हूँ… मैं हंसा और बोला कहाँ हैं आप? आयी नहीं… हाँ यहाँ कुछ लोगों को बुखार है और सेवादार कम है सो रात यहीं रुकना है… व्हाट्सप्प पर मैसेज किया था, आपने पड़ा नही… अरे आज व्हाट्सप्प देखा ही नहीं, दिमाग में चिंता थी सो… ओ… ओ… मिस्टर ऑनलाइन, जब मैने मैसेज किया तो आप ऑनलाइन ही थे… नया नाम सुनकर मुझे हंसी आ गई…. ओके-ओके मिस्स ऑनलाइन… आप भी थी तभी तो मुझे भी देख पायी आप ऑनलाइन… मुझे तो डर लग गया… कि आप ठीक तो हो… मेरी बात पूरी भी नहीं हूई की वो बोली… नहीं मरूंगी अभी… अब मैंनें कैंसर से कह दिया है कि ठीक हो जा वर्ना मेरा प्यारा सा दोस्त तुझे मार भगायेगा… और वो हँस पडी… मैं थोड़ा उदास हो गया… उसने फिर कहा, ठीक बोला ना… वह तो ठीक था पर मरने की बात ठीक नही थी… वह बोली अरे ठीक है… मैने कहा, क्या ठीक है… अगर मैं अपने लिए बोलूं तो क्या आपको ठीक लगेगा? वो बोली जिसका इतना अच्छा दोस्त हो, कैंसर तो क्या काल भी उसका कुछ नहीं कर सकता… मैंने कहा बातों में कोन जीत सकता है आप से… अच्छा जी… उसने कहा… और सुनाओ क्या किया आज? मैने कहा, क्या करूंगा फ़ोन पर गेम खेल रहा था… तो बोर होकर बन्द कर दिया… मन उदास है… सोच रहा था कि ये कोरोना ठीक होता और ये लॉकडाऊन खुल जाता तो मैं भी आपके पास आश्रम आ जाता… कुछ सेवा करके कर्म ही सुधर जाते… वह बोली चलो जी, फिर रखूँ फ़ोन? सब लोगों को खाना भी खिलाना है… बाद में फ़्री होकर व्हाट्सप्प पर मैसेज करूंगी, ठीक है… मैंने कहा नही ठीक है… मैने कहा चलो गेम ही खेल लो फ़ोन पर और गंगा किनारे घूम लो… नही अच्छा लग रहा… मैंने कहा… गेम मे अगर जीतो तो दो बार राधे राधे बोलना यदि हार जाओ तो बार-बार राधे-राधे बोलना… इस तरह नाम जाप भी होगा और गेम मे मज़ा भी आयेगा… ठीक है… ओके बाय… वह तो बच्चे की तरह समझा गयी और चली गयी… पर अब मेरा मन खुश था… इनकी बातें लोगों से अलग थी वर्ना मैं तो किसी से बात ही नहीं करना चाहता… केवल काम की ही बात सुनना पसंद करता हूं… फिर मैंने आंखे बंद कर हाथ जोड़कर प्रभू से साध्वी के स्वस्थ होने की प्रार्थना की…

इसी तरह महीना ही होने को था और हमरी दोस्ती बढती ही जा रही थी… तथा दुनिया मे कोरोना का शोर… किसी ने ठीक ही कहा है कि शोर मचा है ज़मीन पर कि “हमारी मर्जी हमारी हुकुमत”… लगता है बड़ा गरूर हो गया है इन्सान को… तो उसने बताया की लो फिर अब सब… मेरी दुनिया मे मेरी हकुमत… और हिल गये सारी दुनिया के बडे-बडे ठेकेदार… दोस्तों दुनिया में सब कुछ मिल सकता है परन्तु आप पूरा जीवन भी दो तब भी जीवन नही खरीद सकते… ये उसकी मर्ज़ी पर है… आजकल फिर कई दिनो से वो नही आ रही थी… जिस दिन मिली थी उस दिन भी कुछ उदास थी… चेहरे पर एक पीडा थी… पर वह उसे छुपाने की असफल कोशिश कर रही थी… मेरे पास सोचने के सिवाय कोई चारा भी न था… फ़ोन पर ही बात होती थी… सोचता हूं धन्यवाद इस कोरोना का जो कि इतने हाई टेक्नोलॉजी के जमाने में आया… लोग मैसेज कर सकते हैं, बात कर सकते हैं, वीडियो कॉल पर एक दुसरे को देख सकते हैं… कोई कहीं फंसा है तो कोई कहीं… ऐसा समय आ गया है कि बिमारी ही नहीं, अन्तिम संस्कार भी वीडियो कॉल पर देख रहे हैं… इससे ज्यादा बुरा समय और क्या आयेगा… परन्तु सोचा जाय तो इस सुन्दर दुनिया पर चडा धूल मैल गन्दगी को साफ करने को ये सब हुआ है… थोडा सबक तो थोडी सफाई… पवित्र बहती नदियों की, पहाड़ियो की, प्रदूषित नगर गाँव की, जीव जन्तुओं की, इंसानो के घमंड अकड की, सभी की सफाई… धूल झड़ गयी एक झटके मे… इंसान जाने कहां खुशियाँ ढूंढ रहा है… खुशियाँ तो परिवारों मे है, अपनों में है… एक दूसरे को नीचा दिखा के अकेले ख़ुशियाँ कितने दिन की? ये खोखला सा है सब… अरे मैं किस गहराई में डूब चला हूँ… फिर ले दे कर फ़ोन पर दुबारा… चलो गेम खेलूं… साथ मे राधे नाम का जाप… साध्वी कहती है जीते तो राधे-राधे और हारे तो कई बार राधे-राधे… और साध्वी का फ़ोन भी तो आयेगा… थोडा मन को उत्साह से भरा व गेम खेलने लगा…

कुछ दिन और बीते… जब भी लगता लॉकडाउन खुलेगा तभी नये कोरोना मामले सामने आ जाते और सरकार के पास लॉकडाउन आगे बढाने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता… सभी लोग अपना ध्यान रखते तो शायद जल्दी संभल जाते… परन्तु दिमागदार लोगों की कमी कहांं है… अगर कोई उन्हें उन्हीं के लिए भी समझा रहा है तो उसमे भी उन्हे अपनी बेईज्ज़ती लग रही है… तो क्यों सुनें… चाहे फिर पूरा परिवार ही क्यों ना कोरोना के घेरे में आ जाये…

कई दिनों से साध्वी से मुलाकात नहीं हुयी… फ़ोन पर भी कुछ खास नहीं… तबियत खराब है शायद… क्या बात है? आज मैंनें फ़ोन कर दिया… तो फ़ोन देर से उठाया, हैल्लो (धीमी आवाज़ में)… मैने कहा हेल्लो मैडम क्या हुआ… धीरे क्यो बोल रही हो… आज आपने फ़ोन नही किया इसलिए मैंने कर दिया… धीमी आवाज़ में बोली, कोई बात नहीं आज तबियत ठीक नहीं है जरा… तो दवा खा कर लेटी हूं… कल बात करें? मैं थोडा चुप हो गया… उधर से आवाज आई क्या हुआ चुप क्यों हो गये… मैं सकपकाया… अरे कुछ नही… अगर दवा से नहीं आराम है तो अस्पताल जाओ… अरे ठीक है ना, इतने दिनों से ज़िन्दा हूं… और फिर इस बिमारी का इलाज बहुत महँगा भी है… तो कोई नही, ये दवा भी ठीक है… मैं बोला, आप बस भर्ती हो जाओ… पैसे की चिंता ना करो… अगर अपना समझती हो तो… वो धीरे से बोली अरे मेरा अपना कोई नही… आज की दुनिया में कौन मन से रिश्ते निभाता है? चाहे कीतना ही कर लो… आपने ये कहा तो ये राधा तो सुन के ही ठीक हो गयी… सच में… तथा फिर रोने लगी… मैं घबरा गया… अरे रोयी क्यों? इतने दिनों की दोस्ती मे आज नाम बताया अपना… वह रोते हुए बोली आपने पूछा ही नहीं… मेरी आंखो से भी आसूँ टप-टप गिरने लगे… मैं चुप था, “हेल्लो” – वह बोली… जरा रुक कर मैंने “हाँ” कहा… वह समझ गयी… बोली रुला दिया ना आपको भी मैंने… मैंने अश्रू पोन्छे  ओर बोला नही…

तो कहाँ रो रहा हूं मैं… वह बोली मुझ से छुपा रहे हो? अब जितना मैं आपको जानती हूं शायद कोई और नही… रोते-रोते मुझें हंसी आ गयी अच्छा जी… तो मुझे बताया क्यों नही की इलाज में मदद करूँ…  साथ मे शिकायत भी की… मुझे अफसोस है… आपका इतना सुन्दर नाम है “राधा” अब जप ही करवा लो… अगर आपको कुछ हो गया तो मैं आपको कभी माफ नहीं करूंगा… “साध्वी” ये नाम रखा था मैंने आपका… “ओह” उधर से पीड़ा भरी आवाज आई… आप सच मे साध्वी हो राधे… मेरे मुख से निकला… तभी वो बोली कल बात करते हैं… थोडा दिक्कत हो रही है… और फ़ोन कट गया… थोडा परेशान हो गया… पूरी रात सोचता रहा काश मैं जाकर मिल लेता… यहीं ले आता एक कमरे मे उन सभी को… क्या करूंगा इतने बड़े होटल का… अब रात नही बीत रही थी… नीन्द भी नही आ रही थी… जाने क्या-क्या खयाल आ रहे थे… कल पुलिस से और माँ-पापा से पूछ के यहीं ले आऊंगा उन्हें… तथा इलाज करवा दूँगा… सुबह के समय आंख लग गयी… आंख खुली तो धूप आ गयी थी… सोचा मैसेज देखूँ… फिर सोचा फ़ोन ही कर लूँ ताकी वो कपड़े बांध ले… बोल दूँ, फिर माँ पापा से पूछ लूंगा… थोडा बहुत वो जानते ही हैं… मैंने फ़ोन मिलाया… तो किसी ने फ़ोन उठाया “हेल्लो” मैंने कहा, क्या मैं राधा जी से बात कर सकता हूं… नहीं बेटा वो तो रात को ही परम धाम चली गयी… मैं तेज़ी से बोला, कोन सा अस्पताल है ये? बताओ, मैं अभी जाता हूं… बेटे वो तो ऊपर वाले के घर चली गयी… फ़ोन हाथ से छूट गया, चक्कर आ गया, खुद को सम्भाला… लगा सब खुशियाँ  छिन गई… नीचे गया और माँ से लिपट कर रोया… “अरे क्या हुआ?” माँ घबराई… फिर खूब जी भर के रोने के बाद सब बताया… पापा ने कहा जा मैं पुलिस वाले को बोलता हूं… पता कर और चला जा पुलिस वाले के साथ… जब मैं वहां पहुँचा वहाँ कोई नहीं था… केवल राख थी व एक चिंगारी चमक रही थी ओर मानो कह रही थी यादो मे रखो दोस्त, आत्मा का मिलन ज्यादा पवित्र होता है… जाओ घर और यादों में मुझे कभी मत भूलना… पुलिस वाले के साथ मैं उसके घर गया… उनसे बात की उनका कोई न था… मैंने कहा कपडे बांधो और चलो अब वहीं होगा जो कुछ होगा… 

दोस्तों, आज उसकी यादें मेरे साथ है… अपना नाम जप के लिए दे कर चली गयी “राधा-राधा”… उसकी माँ हमारे साथ है… तथा मैं उसके आश्रम भी जाता हूं… सेवा भी करता हूं… उसने मेरे जीवन को बदल दिया… मैं रात के अंधेरे जैसा था… उसने दिन का चमचमाता दिल बना दिया… एक अच्छे दोस्त से ही परिवर्तन आता है… मैं  देख रहा हूं दोस्तों… गंगा की धारा में, हवा के झोंके मे, सितारो मे, मैं उसे देखता हूं… हर जगह है वो… एक सुन्दर जीवन जीने का रास्ता… 

दोस्तों कोरोना अभी चल रहा है, लॉक डाउन भी पता नही कब तक रहे… ओके दोस्तों राधे-राधे बोलते रहें बार बार

लेखिका – पुष्पा थपलियाल

(डिप्टी सेक्रेटरी, प्यारे फाउंडेशन, +91-8587890152)

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