आज मैं कृष्ण संग निधिवन के लिए निकली… गलियों में घूमते फिरते निधिवन के निकट आ गए थे… सभी छोटे बड़े मंदिर में दर्शन करते हुए हम टेड़े खम्बे मंदिर के बाहर से अंदर के लिए जा रहे थे…. कि भीड़ में मेरा हाथ कान्हा के हाथों से छूट गया…. बस हाथ छूटा और मैं कान्हा से थोड़ा दूर हो गयी… इतने में एक बन्दर तेज़ी से आया… मेरे कंधे पर चढ़ा और मेरा चश्मा निकाल ले गया… मैं घबरा गयी… मेरे मुँह से चींख निकली…
मेरी चींख सुनकर भीड़ में से कई लोगों ने पलट कर देखा और कुछ ने पूछा कि क्या हुआ… मैंने बताया कि बन्दर मेरा चश्मा ले गया और में श्याम भी जल्दी से मेरे पास आ गए… मैं श्याम से लिपटकर फूट – फूट कर रो पड़ी…. अरे क्या हुआ… पुष्प और मुझे चुप कराने लगे….
मैंने शिकायत भरे लहज़े में कहा… कहाँ चले गए थे… ज़रा सा हाथ छोड़ा और मुझ पर संकट आन पड़ा… देखो न बन्दर मेरा चश्मा ले गया… कहा ने कहा… अरे चश्मे का ये क्या करेगा और हंस पड़े… मैंने रूठने के अंदाज़ में कहा… हंसी आ रही है आपको मेरी इस दशा पर…. नहीं – नहीं पुष्पे… कृष्ण ने प्रेम से मेरी ओर निहारकर कहा… उस बन्दर पर हंसी आ रही है… उसकी ओर इशारा किया श्याम ने – देखो न दांतों से कैसे काट रहा है चश्मे की डंडी को… मैंने जिद की मुझे वो चश्मा चाहिए बस… कान्हा ने कहा वही चाहिए? मैं बोली “और नहीं तो क्या – वही चाहिए”…
पास मैं बैठा दुकान वाला ये सब सुन रहा था… वो झट से एक बिस्कुट का पैकेट लाया और कान्हा की ओर देते हुए बोलै – भाई साहब ये उसकी ओर फेंको तो वो चश्मा लौटा देगा… हमने दूकानदार की ओर प्रश्न भरी निगाहों से देखा… उसने झट गर्दन हिलायी – “जी हाँ” दस रूपए का पैकेट है बस… “दे दूँ”? मैंने कहा… हाँ हाँ देदो भाई… उसने ज्यों ही बन्दर की तरफ पैकेट फेंका… बन्दर ने चश्मा नीचे फेंका… और बिस्कुट का पैकेट लेकर ऊपर चढ़ गया… दूकानदार बोलै – यहाँ जो लोग जानते हैं वो चश्मा उतारकर रख लेते हैं…
चश्मे को तोड़ ही दिया था… श्याम बोले – रखो… जब निकलोगी तो ठीक मिलेगा… मैंने कान्हा की तरफ देखा तो वो पहले ही मंद – मंद मुस्कुरा रहे थे…. नज़रें मिलीं और फिर हम मुस्कुरा कर मंदिर में आ गए… जब हम मंदिर से लौटे तो मैंने कान्हा से कहा… देखो श्याम, आपके धाम में भी लूट और बेईमानी चल रही है… वो कैसे सखी? देखो न पंडित को… जो रूपए चढ़ा रहा है प्रसाद उसी को मिल रहा है… हाँ, मैं सब देख रहा हूँ… अब देखो न मुझे कौन जान रहा है यहाँ पर जबकि सब मेरे दर्शन की आस लेकर आये हैं…
मैं थोड़ा उदास हो गयी और एक अजीब सी अनमनी सी धुन में कान्हा की ओर निहारने लगी… सोच रही थी… हे कान्हा, देख ले अपनी बनाई दुनिया को… ये पहचान नहीं पा रहे तुझे क्योंकि मन का आईना साफ़ नहीं है… वो किसी ने कहा है न… “कि धुल तो चेहरे पे थी और आईना साफ़ करता रहा”…
तभी तो आप भगवान् हैं और हम इंसान… अपने ही ईश्वर पा रहे हैं… और वो हँसते – हँसते सबकी हरकतें देख रहे हैं और सुन रहे हैं… मंदिरों में लोग उलाहना देते तो श्याम सामने खड़े मुस्कुरा रहे हैं… उनके साथ बुरा होता है तो कहते हैं… प्रभु आपने ये क्या किया? और जब अच्छा होता है तो कोई नहीं कहते… सोचते हैं हमने अच्छा कर दिया.. वाह रे इंसान तू अच्छा और बाकी सब बुरे… गलत फेहमी का पुतला है इंसान….
मुझे तब ध्यान आया जब कान्हा ने मेरा हाथ खींचते हुए कहा कि आगे चलो… मैंने सकपका कर बांके बिहारी का वो मासूम मुस्कुराता हुआ चेहरा देखा तो देखती ही रह गयी… उस चेहरे से नज़र ही नहीं हटती थी.. मैं बार – बार कहीं खो जाती थी… अब हम निधिवन के अंदर थे… मैंने कृष्ण से पूछा, प्रभु क्या आप यहाँ आते हैं? कान्हा ने मेरी ओर मंद – मंद मुस्कान से निहारा और बोले… हाँ – हाँ… मैं तो यहीं रहता हूँ…हर जगह.. मैंने प्रश्न भरी निगाहों से कान्हा की आँखों में झाँका फिर थोड़ा रुक कर पूछा… कान्हा, रास भी करते हो… ? हाँ – हाँ.. तो आप तो मेरे साथ हो…. पुष्प, कहा न मैं हर जगह हूँ… जहाँ – जहाँ मेरी ज़रूरत है… मैं वहीं हूँ.. तुम मुझे इस रूप में मानती हो और प्रेम करती हो… तो मैं तुम्हारे साथ इस तरह से ही हूँ… जो जैसे चाहेगा… मैं वैसे ही आता हूँ… पर भाव से पा सकते हो मुझे… मुझे महसूस करो तो मैं हूँ पर मन व भाव से… पुष्पा तुम मुझे देख रही हो व महसूस कर रही हो मन से… तो मैं तुम्हारे साथ हूँ न… मैंने कान्हा का हाथ ज़ोर से पकड़ा… लगा कि कहीं छूट न जाये… मैं कितनी सौभाग्यशाली हूँ कि अपने रचियता के साथ हूँ… वो मुझे मेरे नाम से पुकार रहे हैं….
हम आगे बढे तथा अंदर मंदिर में बैठ गए… मैंने फिर एक सवाल पूछा… कान्हा आप हर जगह हो…? पूछ कर प्रश्न भरी निगाहों से कान्हा की सुन्दर छवि को निहारने लगी.. कान्हा ने प्रेम भरी जादुई मुस्कान से मुझे देखा और बोले… पुष्पा ये सत्य है… हर कण में मैं हूँ… हर जगह मैं हूँ… यहाँ तुम्हारे साथ हूँ… तो कोई वहां महसूस करेगा तो मैं वहां भी हूँ.. अंदर मंदिर में जो मुझे मन से महसूस कर रहे हैं तो मैं वहां भी हूँ… मैं कान्हा के और समीप आ चिपकी… कान्हा,, मैंने प्रेम से पुकारा… हाँ, पुष्पा.. बोलो,,, कान्हा ने प्रेम से मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर सहलाया…
कान्हा, ये रास का क्या सच है? पुष्पा, ये मन की भावना का सच है… मेरे कितने करीब हो तुम.. ये सच है.. तुम मुझे देखकर कैसे – कैसे महसूस कर रहे हो… वो सच है… जैसे याद करोगे… वैसे ही मुझे महसूस करोगे… ये वो सच है… पुष्पा, बताओ तुम मेरे साथ हो.. ? मुझे महसूस कर रही हो..? हाँ, कान्हा… मैंने लग – भग कान्हा को लिपटते हुए कहा… तो बस यही सच है… कान्हा ने मेरी और देखा… तो मैं जानी – अनजानी सी सोच में डूबी कान्हा का मुख देखती रही… मेरी समझ में आने लगा था…. कृष्ण का प्रेम पाने का तरीका… सच में, ईश्वर भाव का भूखा है.. अपने भक्तों के प्रेम का… मैं देख रही थी कृष्ण मेरे संग हैं… जो मैं भाव में डूबकर समझकर रही थी… वही मुझे दिख रहा था… महसूस हो रहा था..
मैंने बात को समझते हए कहा… हाँ कान्हा, ये ही सत्य है.. सच कान्हा, आप कण – कण मैं हैं.. मैं जब आपको भजति हूँ… तो जानते हो वहाँ पर मैं नहीं मेरी जगह आप ही होते हो… मैं मन की आँखों से जब देखती हूँ तो मुझे मेरी जगह आपकी छवि दिखती है… तब लगता है, ईश्वर यानी आप मुझमे ही तो हो…कहाँ जा रही हूँ आपको ढूंढने… हर जगह आप ही दीखते हो.. जान गए कि हर जगह आप ही तो हो… हर पल आप मेरे साथ हो कान्हा…
मैंने अपने भाव बताकर देखा तो कान्हा अपनी चिर – परिचित निश्छल मुस्काना भीकरते हुए मेरी ओर ही निहार रहे थे… अहा.. क्या हंसी थी… जादू डाल दिया है..
दोस्तों, इंसान का प्यार दुःख का कारण बनता है, चाहे वो कोई भी रिश्ता हो पर ईश्वर से प्रेम दुःख हर लेता है… सुख में डुबो देता है वही हमारा सच्चा साथी है… माता – पिता, सखा – बंधू, भाई – बहिन, बेटा – बेटी, प्रेमी – सच्चा प्रेमिम सब वही है… दुबके तो देखो उसके प्रेम में… बस एक बार ज़रूर डूबकर देखना उसके प्रेम में….
मैं तो कृष्ण संग – संग हूँ… और अपनी गौ माँ की रक्षा के लिए अपने गुरु संग भी जिन्होंने मेरा हाथ कृष्ण के हाथ में दिया… सच, गौ सेवा, कृष्ण सेवा या यूँ कहूं कृष्ण प्रेम… आप भी आईये गुरु संग चलकर गौ माता को बचाएँ… और कृष्ण से प्रेम करें…
श्री कृष्ण संग निधिवन की सैर…..
बहुत ही सुन्दर कल्पना पुष्पा थपलियाल द्वारा….
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