जब से गौलोक धाम गयी……… मैं अपने आप में नहीं थी…….. एक ऐसी शांति न कोई चिंता न कोई चीज़ की चाहत ……… जब से कान्हा संग गौलोक धाम आयी हूँ……. कान्हा की मेहमान बन कर घूम रही हूँ……… वे एक संगमरमर के पथर पर बंसी लिये बैठे हैं…….. और मै गोद में सर रखके […]
जब से गौलोक धाम गयी……… मैं अपने आप में नहीं थी…….. एक ऐसी शांति न कोई चिंता न कोई चीज़ की चाहत ……… जब से कान्हा संग गौलोक धाम आयी हूँ……. कान्हा की मेहमान बन कर घूम रही हूँ……… वे एक संगमरमर के पथर पर बंसी लिये बैठे हैं…….. और मै गोद में सर रखके […]
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