चंद्र कुंड के आस पास हल्का कोहरा फैला था… ओंस की बूँदें पेड़ों की शाखाओं से मोती की तरह टपक टपक कर धुल में मिली जा रही थी… हलकी सी ठण्ड… जो मन को भली लग रही थी… वो सिरहन जो शरीर में हलचल पैदा करती तथा एक मीठी सी कश्मकश … ऐसा सुबह का नज़ारा.. रात और दिन का खूबसूरत मिलन व रात का अँधेरा दिन के उजाले में सिमटता सा… जंगली फूलों से चारों और फैली मंद भीनी सुगंध आ रही थी… स्वर्ग सा नज़ारा.. चरों तरफ दूर……. तक फैली हरियाली तथा बीच में चंद्र कुंड… हर साल की भाँती इस बार भी स्वर्ग से देव, गण, परियां कुंड में नहाने उतरे…. एक परी नहाकर सैर के लिए जंगल में निकली… वह दूर तक जा निकली…. तथा सारी परियां रौशनी होते ही चली गयी… जब वे परियां गयीं तो उस परी की जादू की छड़ी भी ले गयी…. इधर परी घूम कर आयी तो उदास और परेशान हो गयी… अब मैं क्या करूँ… जादू की छड़ी भी नहीं है… वो सोचने लगी कि अब साल भर यही रुकना होगा… जादू की छड़ी के बिना मैं साधारण सी इंसान बन गयी हूँ….

ओह… ईश्वर मेरा क्या होगा… क्या करूँ कहाँ जाऊं,… वह सोचमे पद गयी… कुछ सूझ नहीं रहा था… कोमल मन रो उठा… आँखों से आंसू झर झर बहने लगे और रोते रोते सिसीकी बंध गयी… किसे अपना दुःख सुनाये… कहाँ जाये… मृत्यु लोक के बारे में वह कुछ नहीं जानती थी… एकदम अनजान थी…. वह इसी सोच में उठी तथा एक रास्ते में धीरे धीरे चलने लगी… अब सूर्य देव भी अपनी सुबह की हलकी गुलाबी किरणों से मौसम में राहत लाने लगे… परी अपने आँचल को समेटती…. कभी कभी नरम गुलाबी धूप का आनंद लेने लगी…. पहाड़ों की ठण्ड थी…. अब परी थक गयी…. वह रुकी तथा एक बड़े पत्थर पर उचक कर बैठ गयी… उसने देखा सामने थोड़ी दूरी में गाय माता घास चर रही है… वह उसे ध्यान से देखने लगी… फिर कुछ सोच कर वह उठी और गाय माँ की और चल दी… पास पहुँच कर दोनों हाथ जोड़े … उसे लगा एक साथी मिला… गाय माँ ने भी उसे निहारा… मानो जान गयी हो कि ये सुन्दर सुकोमल भली सी नारी ज़रूर कोई देवी शक्ति है… पल भर में गाय चल दी तथा परी उसके पीछे होली… कुछ दूरी पर भोलेनाथ का मंदिर आया… गाय रुकी मनो कह रही हो कि तुम जाकर भोले के दर्शन करो… परी अंदर गयी… उसने देखा एक काम उम्र का लड़का वहां पूजा कर रहा है… जो सफ़ेद कुरता धोती पहने था… परी ने हाथ जोड़े तथा बहार आकर बैठ गयी… गाय भी कहीं दिखाई न दे रही थी… कुछ समय बाद पंडित लड़का बहार आया…. इतनी सुन्दर स्त्री को देखकर सहम सा गया… सोचा कि टूरिस्ट आते रहते हैं… पर फिर अगले ही सोचा… अकेली इस जंगल में… मन ने कहा कि साथी लोग आ रहे होंगे…

कुछ समय वह अपना काम करता रहा… कोई नहीं आया… उसने सोचा पूछूं… इतनी सुन्दर सुकोमल स्त्री है अकेली है…. उसने साहस बटोरकर पास जाकर पूछा…मैडम जी…. परी अपने ख्यालों में डूबी थी… वह फिर बोला…. मैडम जी… परी (हड़बड़ाकर और चौंककर)… जी.. जी कहिये… वो..वो मैं पूछ रहा था कि आप अकेली हो? आपके साथी लोग कहाँ हैं… परी थोड़ा मुस्करायी … जी… साथी सब सूर्य निकलने से पहले गए तथा छड़ी भी ले गए… पंडित कुछ समझा नहीं… पर कुछ इतना समझा की ये अकेली है… मैडम जी… यहाँ तो जंगल में बाघ खा जायेगा… चलो पास में मेरा घर है… मेरे पिताजी इस मंदिर के पुजारी हैं… हाँ कभी मैं भी आ जाता हूँ… उसने मंदिर बंद किया और परी को चलने के लिए कहा… परी उसके पीछे चल दी… पथरीले रास्ते में उसके सुकोमल पैरों में चलने से थकान से दर्द होने लगा… पंडित समझ रहा था कभी कभी पीछे मुड़कर देख लेता था… आओ मैडम जी… धीरे धीरे… बस आ गया घर…
घर में उसके पिता पास में आँगन में बैठे थे… लड़के के साथ एक सुन्दर स्त्री देख चौंके और बोले…. कौन है… माधव ने तुरंत कह सुनाई साड़ी बात… चिंता मत करो इसके साथी आ जायेंगे… फिर ये चली जाएगी… फिर वह चाय बनाकर लाया और कहा…. चाय पीलो मैडम जी… थकान उतर जाएगी … परी ने चुप चाप चाय पीली .. सोचा अच्छी है… उसके पिताजी ने पूछा “नाम क्या है बेटी?”… परी ने ध्यान से बूढ़े पंडित की बात सुनी… कुछ सोचकर बोली परी है मेरा नाम… अच्छा… चल अंदर जा कर आराम कर ले….

इस तरह दिन बीतने लगे… परी उनके साथ घर के काम करना भी सीख गयी थी… उसे गाय के साथ जंगल में चराने जाना अच्छा लगता था… गाय ही तो उसे लायी थी यहाँ… खाना बनती और माधव के साथ समय बिताती… उसे मृत्यु लोक के जीवन में रुचि आने लगी…. माधव जैसे… भोले व सादे इंसान के साथ बातें करना अच्छा लगने लगा…. माधव भी हर पल उसके साथ रहना चाहता था… मन ही मन शायद एक दुसरे को पसंद करते पर कह न पाते… पता ही न लगा कि समय कैसे बीतता जा रहा था… मनो पंख लगा के उड़ रहा हो… जबसे परी आयी घर में रौनक आ गयी थी….गाय माता ज़्यादा दूध देने लगी थी… अब परी के जाने के दिन पास आ गए थे… वह खुश थी…. परन्तु अकेले में जो साथ माधव से उसे मिला वह सोच कर उदास हो जाती थी… फिर सोचती… ये समझता ही नहीं कि मैं परी हूँ… मैं इस शरद पूर्णिमा को परियों के आते ही चली जाउंगी…
वह उस एक वर्ष की ज़िन्दगी को यादगार बना रही थी… उसके दोनों दोस्त… गाय व माधव जिन्हे वो बहुत प्यार करती थी… माधव एक पल भी परी को न देखता तो परेशान हो जाता… परी ने एक दिन माधव से पूछा … मैं अगर चली गयी तो क्या आप मुझे याद करोगे? माधव हंस कर बोला … कहाँ जाओगे मैडम जी… अबतक तो आपके घर वाले आये नहीं… सच माधव… अगर गाय माता मुझे न मिलती तो आप भी न मिलते… हूँ… ठीक कहती हो आप मैडम जी… वह मन में सोचता…आपके बिना कुछ भी ठीक नहीं लगेगा.. पर कह न पाता… समय कहाँ रुकता है किसी के लिए…

एक दिन सुबह माधव उठा और उसने देखा कि परी घर में नहीं है… उसने गौशाला में जाकर देखा… वहां भी नहीं थी… अरे कहाँ गयी होगी… दौड़कर पिताजी से पूछा .. परी को देखा? पता नहीं कहाँ चली गयी सुबह ही… अरे घास लेने गयी होगी गाय के लिए… देखते ही देखते शाम हो गयी…. माधव और उसके पिता ने सब जगह देखा पर वह कहीं न मिली .. रात होने लगी… अरे माधव .. कहीं बाघ तो नहीं खा गया होगा… माधव कमरे में जाकर लेट गया… रो रो कर बुरा हाल कर लिया… एक बार आओ परी…. कहाँ हो मैडम जी… और फिर पता नहीं रोते रोते कब नींद आ गयी… और फिर परी आ गयी… उसने माधव के मुरझाये चेहरे को ध्यान से देखा … प्यार से उसके चहरे पर हाथ फेहरा… माधव मैं तुम्हारी परी… आज मैं वापिस चली गयी हूँ… तुम्हे याद करुँगी… और तुम मुझे जब भी याद करोगे अपने पास पाओगे… अब मैं जाऊं… माधव को जैसे होश आया…. उसने उसका पल्लू पकड़ लिया… नहीं नहीं परी तुम ऐसा नहीं कर सकती हो… मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता हूँ… पता है मैं सुबह से तुम्हे ढूंढ रहा हूँ… तुम मेरे पास बैठो… मुझसे कुछ गलती हो गयी हो तो माफ़ी चाहता हूँ… अरे माधव तुम गलती कर ही नहीं सकते हो… अब मैं चलूँ… नहीं नहीं… मैडम जी… वह रोने लगा…. उसने परी का पल्लू कसकर पकड़ लिया…. पर परी चली गयी…. माधव की नींद खुली तब सुबह हो चुकी थी… अरे यह सपना था… अगले पल देखा कि उसके हाथ में परी का दुपट्टा था और उसकी आँखें आंसुओं से गीली थी… वह सब समझ गया… यह सच में परी ही थी…. दुपट्टे से आंसू पोंछ कर उन्हें रोकने का एक असफल सा प्रयास कर रहा था….

परी चली गयी… पीछे यादें रह गयीं… वो भी कभी न भूलने वाली… माधव उन बीते हुए पलों के साथ जीने की कोशिश में जुट गया था… इस प्रकार गाय माँ ने इस मृत्य लोक में रक्षा की तथा परी एक वर्ष बिता पायी…
” डिप्टीसेक्रेटरी – प्यारेफाउंडेशन“
लेखिका – पुष्पाथपलियाल” एकसुंदरकल्पना “
फोन न. –
8587890152 ; 8377075517
ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है
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