कृष्ण संग संग भाग ३ (3)

Radha Krishna in journey

जल्दी-पूरे घर के काम समाप्त किये और हर आहट पर नज़रें बाहर दरवाज़े पर टिकी थी…. क्यों न होती-मेरा कान्हा मेरा प्रियतम मुझे आज अपने साथ “गोवर्धन” तथा “निधिवन” घुमाने के लिए लेने आने वाले थे… कृष्ण रूप की छवि मेरी अँखियों में रस बस गयी थी…. आँखों के आगे वही छबीला-चंचल रूप वो जादुई मधुर मुस्कान……. वो दूसरों को अपनी ओर खींचने की अदा…. वो मदमस्त होकर बातें करना….  वो ईश्वर जो हमारा सबकुछ है….. वो सब मैंने कान्हा के साथ देखा तथा महसूस किया… मैं वही यादें भूल नहीं पा रही थी….

अपने कृष्ण संग घूमने जाने को बड़ी बेचैनी से इंतजार कर रही थी….. एक ठंडी हवा का खुशबूदार झोंका आया और मेरे पूरे बदन में एक अजीब सी सरसराहट हुई…. खुशबू से तनमन भीग गया… पूरा घर सुगन्धित हो गया…. मेरी आँखें अपने आप बंद सी हो गयीं… एक अजीब सा नशा मन मंदिर में छा गया… मैं समझ गयी कि आ गया मेरा श्याम… इस जहान का मालिक अपनी एक प्रेमिका भक्त  के पास…. उसे रिझाने…. देखो न वो कृष्ण अपने प्रेमियों के लिए क्या कुछ नहीं करता… मैं अपनी आँखें मूंदे बैठी ही थी उस रूप को अपनी आँखों व अपनी यादों में छुपाये….

इतने में मीठा मधुर स्वर गूंजा…. सखी कहाँ खो गयी हो…. तथा धीरे से मेरा हाथ थाम लिया और बोले चलो… मैंने झट आँखें खोली… उस मनोहारी छवि को निहारने लगी…. जिसे देखने  के लिए लाखों वर्षों से तपस्वी तप कर रहे हैं…. और मेरा सौभाग्य देखो वो मुझे सखी बनाकर अपने साथ लेजा रहे हैं… कृष्ण मेरी हर सांस में… हर बात में… तथा हर इंसान में रसा बसा दिखने लगा था… उसकी खुशबू मेरे तनमन में समां गयी थी…. बस यही तो चाहिए परमात्मा को…. प्रेम बस निस्चल प्रेम…. मैंने  धीरे से कहा ज़रा हाथ छोडो तो मिश्री खिलाऊँ…. कान्हा ने हाथ कसके पकड़कर कहा चलो अब सुबह खिला तो दी थी पूजा में…. और मैं उस जादूगर के संग संग चल दी…. अब हमें कोई नहीं पहचान रहा था…. क्योंकि कान्हा वृन्दावन का ग्वाला बन गया था….

इस समय हम गोवर्धन यात्रा के लिए तैयार थे…. निचे लेटकर माथा टेका और चल दिए संग संग प्रभु का हाथ थामे… मैं मदहोश हुई चल रही थी… एक आदमी लेटलेटकर खड़ा होता फिर लेटता…. वह इस तरह यात्रा कर रहा था… मैं थोड़ा रुकी तो श्याम भी रुके व मेरी तरफ देखा सखे क्या हुआ? श्याम ये इंसान इतनी तकलीफ उठाकर आपकी यात्रा कर रहा है… कृष्ण ने मेरी ओर देखकर कहा…. सखी पुष्पा ये अपने परिवार के ज़्यादा सुख लेने के लिए कष्ट उठा रहा है….

हम खड़े थे इतने में उसके साथ चलते एक आदमी ने कान्हा को कहा….  हाँ-भाईसाहब हठों ज़रा… रास्ता रोके खड़े हो…. ये बेचारा कितनी कठिन यात्रा कर रहा है…. मैं उसकी बात सुनकर चौंकी… कान्हा ने मेरा हाथ दबाया और चुप रहने का इशारा किया… मैं हैरत में पड़ी सोचने लगी…. जिसको पाने के लिए ये इतना कष्ट उठा रहे हैं… उसी को रास्ते से हठा रहे हैं… ओह… कान्हा ने मेरा हाथ पकड़ा और चल दिए… हम अंडाकर मंदिर में घूमने लगे…. वहां पर शिवलिंग भी था… मैं झट से एक लोटा जल लायी… कान्हा आओ जल चढ़ाए… कान्हा ने जल के लोटे को हाथ लगाया और आँखें मूँद लीं… मैं तो उन्हें ही निहार रही थी… अचानक मुझे लगा… जैसे साक्षात भोलेनाथ प्रकट हो गए… पर मुझे लगा लोटे का जल समाप्त हो गया…. वहां से बाकी मूर्तियों को देखने लगे…. कृष्ण की बड़ी मूर्ती देखकर मेरे मुँह से ज़ोर से निकला – आपकी मूर्ती से आपकी सूरत कहाँ मिल रही है? मेरी बात सुनकर हमारे आगे खड़े आदमी ने चौंककर पीछे पलट कर देखा तो मैं झेंप सी गयी और कृष्ण के साथ सट्ट के खड़े होकर थोड़ा मुस्कुरायी…. वह आदमी भी थोड़ा मुस्कुरा कर मूर्ती को देखने लगा….

मैं बोली – ऐ कान्हा आज तो पकडे जाते… कान्हा मंद मंद मुस्कुरा पड़े…. फिर हम बाहर आ गए तथा धीरे धीरे चलते रहे… काफी चलने के बाद एक दुकान वाला मीठी लस्सी बेच रहा था… चलो कान्हा लस्सी पीते हैं…. हम दुकानदार से लस्सी के कुल्हड़ लेके पास में हरी घास पर बैठ गए…. कान्हा एक पत्थर के ऊपर बैठ गए और मैं उनके पैरों के पास बैठ गयी…. लस्सी पीकर मैंने देखा कि कान्हा के होठों के छोरों पर लस्सी लगी है… मैं झट उठी और अपने आँचल से कान्हा का मुँह पोंछा तथा बोली – बच्चों की तरह लस्सी से मुँह लिपटा लिया… कान्हा मुस्कुराये बिना न रह सके और बोले…  हाँ.. पुष्पे आपने मेरा मुँह कहाँ से देखा था बचपन में…. मैं हंस पड़ी… क्यों नहीं आपकी फोटो मैंने देखी है न… और नहीं तो क्या…? और हँसते हँसते कान्हा की ओर निहारती रही…. कान्हा भी मेरे संग खूब हँसे… मैं फिर बोली कान्हा….हर समय इस संसार की चिंता में रहते हो… मेरे साथ घूमने से थोड़ा आराम पाओगे… कान्हा वही जादुई मुस्कान बिखेरते हुए बोले…”हाँ” ठीक कहती हो तुम…. तथा कान्हा वहीँ पर घास पर लेट गए तथा आँखें मूँद लीं….

मैं बड़े प्रेम से कान्हा की उस छवि को निहार रही थी…. जिसकी झलक सपने में तक पाने के लिए साधू – सन्यासी तरसते हैं…. मेरा सौभाग्य देखो… जहाँ का मालिक मेरे साथ सखा बना घूम रहा था… उनकी सोई छवि को मैं बिना पलके झपकाए देख रही थी और मन में वो मूरत बिठा रही थी… इसी तरह समय निकल रहा था…. मैंने कान्हा को हिलाया..  उनका हाथ पकड़ा और कहा… कान्हा ध्यान में चले गए क्या? आँखें मूंदें ही अधरों पे मुस्कान लिए कान्हा ने आँखें खोली और उठ खड़े हुए तथा मेरा हाथ थामे चलने लगे… धीरे – धीरे बातें करते – करते चलते रहे…

जब हम चल रहे थे, सभी पशु – पक्षी कृष्ण से मिलने आने लगते… जहाँ – जहाँ कृष्ण चलते मनो उन्हें पहले ही अहसाह हो जा रहा था कि प्रभु आ रहे हैं… प्रभु से मिलने की चाहत में सभी कोई पागल हो गया था… उन्हें पाने के लिए ही तो जन्म लिया था… बस एक मनुष्य ही नहीं पहचान पा रहे थे….

मैंने देखा सामने से एक मयूर दौड़ा चला आ रहा है…. मैंने कहा कान्हा देखो कितना सुन्दर मोर…. हाँ सखी देख रहा हूँ… आओ यहाँ इस बड़ी शिला पार्क बैठें… इतने में मयूर पास आ गया… उसने अपने पंख फैलाये और थिरकने लगा… क्या दृश्य था… हम उसे देख – देख मुस्कुरा रहे थे… वह ख़ुशी में झूम – झूम कर नृत्य कर रहा था प्रभु मिलन की ख़ुशी में…

फिर अचानक शांत हुआ और प्रभु की ओर निहारा… अश्रु आँखों से बहने लगे थे… लग रहा था कह रहा हो प्रभु मई धन्य हुआ आपके दर्शन पाकर… कान्हा ने हाथ बढ़ाया और वो तुरंत कान्हा की गोद में आ बैठा… प्रभु ने प्यार से अपना कोमल हाथ उसके शरीर पर फेरा… प्रभु प्रेम का नशा जो पा ले उसे बाकी सब धूल लगे….जीवन का लक्ष्य पूरा हुआ…. मयूर को प्रभु ने धीरे से नीचे रखा… उसने फिर कान्हा की मनमोहिनी सूरत देखी और एक बार मेरी तरफ देखा … मुझे लगा मानो कह रहा हो की प्रभु ने मुझे गोद में लिया… मन ही मन मेरा उत्तर था – तो क्या हुआ – मैं कान्हा संग रहती हूँ जो मर्जी करूँ… तो मुझे लगा मयूर कह रहा है… कान्हा ने मेरा पंख सर पर धारण किया है… मैंने झट से कान्हा के कंधे पर हाथ रख दिया… देखो मयूर इतना मत इतराओ… देखो मैं कान्हा के संग – संग हूँ….

कान्हा हमारे मन की बात देख – सुन रहे थे…  वो मंद – मंद मुस्कुरा रहे थे… फिर बोले बात पूरी हो गयी प्यारे मयूर… कान्हा की आवाज़ से हम दोनों चौंके… मयूर ने कान्हा को ऐसे निहारा मनो उनकी छवि मन में छाप ली हो… कान्हा और मैं आगे चल पड़े तथा मयूर वहीँ कहीं झाड़ियों में लुप्त हो गया….

आगे गए तो कुछ गईया आस – पास चार रहीं थीं… कान्हा का अहसास होते ही सभी हमारी और आने लगीं… मैंने ज़ोर से कहा…. कान्हा, आपकी गईया आ रही हैं… हाँ हाँ… ज्यों ही गईया प्रभु के पास आयीं तो प्रभु ने आप हाथ उठाया, ऊँगली के इशारे से कुछ किया ..  मुझे लगा कान्हा हर गईया के गले मिलकर उन्हें सेहला रहे हैं…. मैं भी यह दृश्य देखकर ऐसे हो गयी जैसे जादू सा छा गया मुझ पर… हर गईया के साथ कान्हा… ये क्या, इतने रूप… हर गईया के साथ कान्हा.. मैं हैरत में पड़ गयी कि ये मेरा कान्हा है… फिर सुध आयी जब कान्हा बगल में आ खड़े हुए… कान्हा ने मेरे कंधे पर हाथ रखा.. मैं चौंकी…. गईया फिर घास चरने लगी… मैं कान्हा संग आगे चल दी….

अब राधा कुंड पास आने वाला था… हम चलते – चलते वहां पहुंचे… हम कुंड की और बढे… पास पहुँच कर कान्हा ने एक पल के लिए आँखें मूँद लीं… मनो राधा रानी को यद् किया… कान्हा ने कुंड में उतारकर आगे हाथ बढ़ाया और मुझे भी नीचे कुंड में उतारा… अब हम कुंड के अंदर खड़े थे… कान्हा ने अंजुली भरकर जल लिया औइर मेरे ऊपर  छिड़क दिया… सिहर उठी… मुस्कुरा कर बोली.. कान्हा… कान्हा ने एक और अंजुली भरकर अपने ऊपर डाला… फिर बॉलर चलो अब… हम बाहर आ गए… मेरी पूरी थकान दूर हो गयी थी… कान्हा के हाथों से जल पड़ते ही पूरे शरीर में स्फूर्ति आ गयी… ज्यों ही बाहर गए पंडितजी एक थाली में तिलक लेकर हमारी और आये… सामने आकर तिलक करना चाहते थे…

कान्हा को साधारण रूप में कोई पहचान ही नहीं पा रहे थे… परे इस अदभुत सुंदरता को देखकर लोग देखते ही रह जा रहे थे… कान्हा ने झट अपने हाथों से तिलक लिया और मेरे माथे पे लगा दिया… और हम चल दिए…

फिर आगे कृष्ण कुंड में भी इसी तरह जल छिड़का और अब हम उसी जगह पर थे जहाँ से परिक्रमा शुरू की थी… कान्हा ने मेरी और मुस्कुरा के देखा… अब बोलो कहाँ चलें? मैंने कान्हा के दोनों हाथ थाम लिए और नज़र भरकर प्रभु की मनमोहिनी सूरत निहारी… मुस्कुरा कर कहा मन नहीं करता कि आपको छोडूं… ये मेरी बदनसीबी है… जितना समय मैं आपसे दूर रहती हूँ पर अब मुझे जाना होगा…

निधिवन कल चलेंगे… समय काफी हो गया मुझे लगा जैसे मैं प्रभु को नहीं छोड़ना चाह रही हूँ… प्रभु भ्ही मुझे उतना ही प्रेम करते हैं… छोड़ना ही नहीं चाहते… जितना हम प्रभु को प्रेम करते हैं… प्रभु अपने भक्तों से उनसे भी ज़्यादा प्रेम करते हैं…

अब मैं घेर में थी… वो ही खिड़ – खिड़ शोर… ईश्वर के जाते ही सुकून ख़त्म और परेशानी शुरू… वही पारिवारिक ताने – बानो से भरी ज़िन्दगी और क्या… अगले दिन कृष्ण संग बिताने के इंतज़ार में मैं व्यस्त हो गयी… अपने श्याम की यादों को समेटे…

इस सुन्दर कल्पना को आगे बढ़ाएंगे अगले भाग में……..

लेखिका – पुष्पा थपलियाल “एक सुंदर कल्पना “

फोन न. – 8377075517

ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है


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