निक्की

एक  चींटी थी जिसका नाम निक्की था…. वह अपने परिवार के साथ एक मकान के आँगन में रहती थी…. सुबह नहा धोकर बचा कुछ अपने नन्हे बच्चों को खिला जाती थी जिनके नाम थे मुन्नू, गोलू, और निक्की ऋतू…आज भी उसने सुबह उठकर अपने बच्चों को खिला पिलाकर, नेहला-धुलाकर तैयार किया तथा खुद भी तैयार होकर बोली, देखो बच्चों मैं काम पर जा रही हूँ… तुम ढंग से रहना… घर से बाहर मत जाना 

जानते हो इस मालिक का एक बेटा बहुत शरारती है जो सारा दिन यही हमारे घरके ऊपर चारपाई डालकर धूप में पड़ा रहता है… और जानते हो, एक दिन उसने मुझे पकड़ लिया था… और चींटी का चेहरा डर से लाल हो गया… फिर वह झट से बोली, पता है कितनी मुश्किल से छोड़ा है उस जालिम ने… ये बात ज़रूर है की उसकी माँ हमारे लिए चीनी और आटा डाल जाती है कभी-कभी.. परन्तु तुम लालच मत करना… मैं लौटकर आकर तुम्हे सबकुछ ला दूँगी… 

चींटी ने देखा दोनों बेटे शरारतों में लगे हैं तथा उसकी बातों पर कम ध्यान दे रहे हैं… उसने दोनों के कान ऐंठ कर कहा… तुम दोनों को ज़रूर मसल देगा वह… दोनों चिल्लाये… ऐ…ऐ… माँ दर्द होता है… छोडो न कान… सच माँ हम नहीं जायेंगे… चींटी को ज़रा संतुष्टि मिली… फिर प्यार से उनके सिर पर हाथ फेरकर बोली… तुम्हारी भलाई के लिए ही कह रही हूँ.. बच्चों मुन्नू गोलू खबरदार… वह जाती जाती बोली… अंदर ही रहना… हां.. उसने बड़ी बड़ी आँखें करके ऊँगली दिखाकर उन्हें डराया.. तथा फिर बाहर आकर सुराख पर बड़ा सा पत्थर धकेलकर लगा दिया और संतुष्ट मन से निकल गयी…

बेचारी निक्की पूरा दिन कहा कहा नहीं भटकी परन्तु आज उसे कुछ न मिला बस अपना ही पेट भर पायी थी… 

आखिर दोपहर भी ढलने वाली हो गयी थी…उसने घर का रुख किया और वापिस अपनी मंजिल की तरफ आ चली थी… बड़ी उदास थी और खोई खोई थी… फिर वह आँगन में आयी… बेचारी थकी हारी तो थी ही उसकी चाल थोड़ा धीमी हो गयी थी क्योंकि घर के पास आ चुकी थी और मन में चिंता थी… अचानक उसने देखा… आटा तथा चीनी के दाने पड़े हैं… उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था… चीनी का एक दाना उठाकर अपने दरवाजे पर पहुंची.. तो देखा पत्थर हटा हुआ था…. उसकी सांस रुक सी गयी और कदम लड़खड़ाए… वह बड़बड़ाई और लम्बे लम्बे डग बढ़ती हुई आगे बढ़ी… मन ही मन सोचा, ये दोनों की शरत जान पड़ती है… निकम्मे– मुन्नू गोलू की आज हड्डियाँ तोड़ तोड़ दूँगी… दोनों ही कहना नहीं मानते हैं… इतने में उसने देखा की वे चारों सामने मस्ती से खेल रहे हैं… हंस रहे हैं… उन्हें देखकर गुस्सा शांत हुआ… माँ को देखकर चारों बच्चे खुश हुए.. माँ ने नकली गुस्सा दिखाकर कहा बहार क्यों गए थे… चारों सहमकर चुप हो गए… फिर उन्हें चुप देखकर वह हंसने लगी… बच्चों मैं और सामान ला रही हूँ आज बहार तो कुछ मिला नहीं… उसने थके स्वर में कहा… 

गोलू मुन्नू ने झट से कहा… नहीं मिला तो ना सही माँ… हमने तो भर पेट खा लिया है… (हां) पकडे गए शरती कहीं के… ठीक है… में कल के लिए ले आऊं.. नहीं तो पडोसी और मोहल्ले वाले ले जायेंगे…

और कह कर फिर बाहर आयी….. जब काफी सामान जमा हो गया तो सोचा थोड़ा और ले आऊं… वह बाहर आयी और चीनी का दाना लेकर जा ही रही थी कि उस घर का शरारती बच्चा जो सोया हुआ था रोज की भाँती… उसने उठकर चारपाई से नीचे झाँका और जानभूझकर बिना देखे निचे पाँव रखा तथा निक्की को पाँव ने नीचे दबोच दिया … निक्की कुछ देर तड़पती रही तथा तभी लड़के की माँ ने उसे चाय लाकर पकड़ा दी… वह नींद की मस्ती में ये ही भूल गया कि मेरी लापरवाही से किसी की जान तड़प रही है… वह राक्षस की तरह उसके हृदय को पाँव तले कुचला जा रहा था…  चींटी काफी छटपटाई मगर वह भूल गया की मैंने किसी की नन्ही सी जानको यूँ कैद करके मसल रखा है… और फिर तभी जब निक्की वापिस नहीं गयी तो उसके बच्चे बाहर आये… तो उन्हें माँ की चींख सुनाई दी… मगर वह धीमी होती जा रही थी… वह फ़ौरन समझ गए की माँ की जान इसके पाँव तले अटकी है.. वह उसके पाँव पर चढ़कर उसे काटने लगे… तभी उस लड़के ने दर्द से पाँव झटका कि चींटियां छूटकर नीचे गिरी परन्तु निक्की के लिए यह प्रहार असहनीय था.;.. और वह मर गयी… लड़के ने चींटियों को कोसा… और पाँव खुजला कर आँखें मूंदकर फिर लेट गया… 

और बच्चो आप समझ सकते हो, उन बच्चों का क्या हुआ होगा…. तो इंसान को जानभूझकर ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे दुसरे के दिल को चोट पहुंचे… लापरवाई दुसरे की जान भी ले सकती है…  

” डिप्टी सेक्रेटरी – प्यारे फाउंडेशन“

लेखिका – पुष्पा थपलियाल”

फोन न. – 
8587890152 ; 8377075517

ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है

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