गौ गंगा

Gau mata

कुछ समय पूर्व की बात है हम कुछ लोग उत्तराखंड घूमने गए…. सुबह का समय था… साथ के सभी लोग सोये हुए थे… कारण के पहले दिन घूमकर काफी थकान थी… आराम से सोये थे… मेरी नींद खुली तो मै अपने होटल रूम से बहार आ गयी… चरों तरफ का सुन्दर नज़ारा देखकर मन ख़ुशी से झूम गया…  ऊँचे नीचे पहाड़ों की कतार… थोड़ी दूरी पर बहती गंगा की निर्मल धारा… तथा ठंडी हवा के झोंके…

अनायास ही मेरे कदम रुके नहीं तथा गंगा को छूने का मन हुआ… कुछ ही समय बाद मै गंगा के पास थी… मैं कोई सुरक्षित स्थान देखने लगी जहाँ से मै गंगा को स्पर्श कर सकूं… बहाव तेज़ था… चलते चलते एक ऐसा स्थान आया जहाँ मुझे लगा मै गंगा को छू सकती हूँ… मैंने किनारे से गंगा जल हाथ में लेकर अपने सर पे धारण किया और बदन पर छिड़का… बार बार गंगा माँ को प्रणाम किया तथा वहीँ एक पत्थर पर बैठकर गंगा जल में पाँव भिगोकर लेने लगी…

अचानक मेरी नज़र कुछ दूरी पर जाकर अटक गयी…. लगा गंगा किनारे झाडी के पीछे श्वेत  वस्त्रों में कोई है… मैँ उठी तथा कुछ कदम चलकर उसी तरफ बढ़ी… ज्यों ज्यों पास पहुंची तो स्पष्ट हुआ… दो महिलाएं आपस में बातें कर रहीं थी… मैं चुप चाप झाडी के पीछे एक पेड़ के तने के सहारे खड़ी हो गयी… क्योंकि अब मुझे उनकी आवाज़ स्पष्ट सुनाई देने लगी… दोनों एक बड़े पत्थर पर बैठी थी… दोनों के बाल खुले थे जो काले घने और लम्बे थे… सफ़ेद साडी पहनी थी… मेरा दिल कुछ घबरा भी रहा था… इस एकांत में ये श्वेत वस्त्रों में कौन हो सकती हैं…

कुछ पल तो मुझे उनकी बात समझ नहीं आयी… परन्तु फिर एक करुणामयी स्वर से स्पष्ट हुआ… बेहन क्या बताऊँ… हम गौ माताओं का हाल तो यह है की मालिक दूध निकल कर घर से बहार कर देता है व् मेरी बाकी बहने जो दूध देती ही नहीं उनको तो शहरों में गंदगी खाकर गुज़ारा करना पड़ता है… यहाँ फिर भी हरी घास तो है….

मैं यह बात सुनकर हैरान हो गयी… मैंने एक ऊँगली से कान साफ़ किया… यह महिला क्या बोल रही है… मैं कोई सपना तो नहीं देख रही हूँ… नहीं नहीं ऐसा नहीं है… मैंने अनमने मन से सोचा…

अचानक दूसरा स्वर उभरा…  क्या बताऊँ बहन मेरा भी वही हाल है…. मनुष्य ने मेरी कदर करनी भी छोड़ दी है… सारे जहाँ का कूड़ा, हर प्रकार की गन्दगी मेरे जल में छोड़ दी है… उन स्वरों में इतनी करुणा थी की कोई भी अच्छा इंसान रो पड़े… परन्तु मैंने सोचा सुन तो लूं आखिर ये हैं कौन… उस समय चारों तरफ एक दिव्य प्रकाश मंडल की आभा बिखरी थी… हवा के तेज़ झोकों से सुन्दर बाल लहरा रहे थे… कभी वे एक दूसरे को देखती तो उनका मुख मंडल का एक हिस्सा नज़र आ रहा था… वे इतनी सुन्दर प्रतीत हो रही थी की मैंने ज़माने में ऐसी सुंदरता तो मैंने नहीं देखी… बहुत सी दुःख भरी बातें कर रही थी… पहली स्त्री बोली बहना तू तो  अपना कचरा बहा ले जाती है… मारा तो वही कूड़ा कचरा खाना रह गया है नसीब में… “वो भी चलो” – और सुनो… जब हमारी बहनें बूढी हो जाती हैं बीमारी के चलते दूध देना बंद कर देती हैं… तो उन्हें कसायिओं को बेच दिया जाता है तथा उनका मांस विदेशों में बेचकर रूपए कमाए जाते हैं… हमारे बछड़ों को पैदा होते ही भूखा मार देते हैं… बैलों की जगह मशीनें आ गयीं हैं…

बस-बस बहन मैं इतना नहीं सुन सकूंगी… तेरी कहानी ज़्यादा दुखदायी है…

क्या बताऊँ बहना… तथा ऐसा कहकर उसका आंसू टपका… दूसरी महिला ने उसे अपने  आँचल में ले लिया… ज्यों ही उसने वह आंसू अपने आँचल में समेटा तो पास बहती गंगा में जैसे तेजाब की बूँद उसमे डाल दी हो… इधर मैं चौंकी… अब मेरी समझ में आ गया की ये तो गौ माता तथा गंगा माता अपना रूप बदल कर अपना दुःख सुख बाँट रहीं हैं… मेर्री सांसें कुछ तेज हो गयी तथा… रोहः काँप गयी…  जब गौ माता का एक आंसू गंगा में गिरा तो तेजाब बन गया… अगर इसी तरह गौ माता के आंसू जहाँ गिरेगा तो जहर फ़ैल जायेगा… हम समझ नहीं पा रहे हैं दोस्तों… हर तरफ हर चीज़ में न स्वाद है न पौष्टिकता… गेहूं, चावल, दालें, फल, सब्जी या दूध-दही, जल सभी नकली प्रतीत होता है… हर तरफ गाय आंसू बहा रही है… रोती कलपती फिर रही है… कैसे भला होगा महुष्य का… ऐसा अन्न-जल खा पी कर क्या मनुष्य अच्छा हो सकता है… सिर्फ श्रापित होकर जियेगा… दुखों की आग में…. अब भी समय है हमारे पास संभलने का… ऐसा नज़ारा देखकर मैंने हिम्मत जुताई की इन देवियों के दर्शन सामने से करूँ…. परन्तु ज्यों ही मैं झाड़ियों के पीछे से निकलकर उधर जाने लगी… तो देखा वहां पर कोई नहीं था… मैनें एक बार फिर खुद को को चुटकी काटी… अरे मैं तो सच में जाग रही हूँ…

फिर मैं वापस मुड़कर अपने साथियों तक जाना चाहती थी… मन में कई सवाल थे… ये क्या चमत्कार था… सोचा शायद गाय के बारे में ज़्यादा ही सोचती हूँ… तभी ऐसे दिखा हो… अरे नहीं…  अगले ही पल एक दूसरा प्रश्न मन में उठा… ऐसा सोचते सोचते कब दोस्तों तक पहुँच गयी पता ही नहीं चला… समय भी काफी बीता… सभी वहां पर मुझे ही ढूढ़ रहे थे… परन्तु मैं मई इस वाक्य से बाहर नहीं निकल पा रही थी… सोच रही थी… किसी को बताउंगी तो सभी मुझे सनकी या झूठा ही कहेंगे…

वो दर्शन वो रूप तीनो लोकों में नहीं मिल सकता… वो सरलता सादापन मुख मंडल की दिव्य आभा…. क्या भुला पाउंगी… “नहीं”… चाहूंगी की वो देवी रूप मन में हमेशा रहे ताकि मैं धन्य हो जाऊं…

जिसे हम ऐसे तिरस्कार के साथ छोड़ते हैं या गन्दा देते हैं…. वो रूप हैं उनका… गाय का तथा गंगा का… ऐसी देवियों को मन मंदिर में बैठाकर पूजना चाहिए… न की उनका तिरस्कार करना चाहिए…

दोस्तों ये पूरा वाक्य सिर्फ काल्पनिक है… “एक लेखक की कल्पना”… किन्तु परन्तु अवश्य लगाउंगी कि क्या  कल्पना कहीं भी झूठी है… क्या ऐसा नहीं हो रहा है… अगर हमारे देश का नेता, अभिनेता, लेखक या कवी गौ भक्त भारत के गुरु धरोवर, संत धरोवर, भारत के सन्यासी या इस देश का समाज… सभी एक जुट होकर लग जाएँ तो…. सिर्फ इन दो देवियों की सुधार सेवा से ही हिदुस्तान का नक्शा बदल जायेगा…

मेरे सद्गुरु श्री गोपाल मणि जी हर गौ कथा में ऐसा  कहते हैं… मेरे गुरुदेव का आशीर्वाद बना रहे सभी पर तथा मुझ पर भी… उम्मीद ही नहीं विश्वास है कि यह नन्ही कल्पना आपको पसंद आएगी…

” डिप्टी सेक्रेटरी – प्यारे फाउंडेशन“

लेखिका – पुष्पा थपलियाल” एक सुंदर कल्पना “

फोन न. –  8587890152 ; 8377075517

ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है


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